रविवार, 27 फ़रवरी 2011

मुझे भूलने कि आदत है

तुम कहती हो, मुझे भूलने कि आदत है।
पर कहाँ भूल पाताहूँ मैं तुम्हारा चेहरा, तुम्हारी आँखें।
यहाँ तक कि एक-एक आंसू जो गिरे उन आँखों से,
और शायद उनकी वजहों को भी।

सब याद है मुझे,
तुम्हारा प्यार भी, जुदाई भी।
तुमसे रूठना भी, तुम्हें मनाना भी।

अब भी बहुत याद आ रही हो तुम।
क्या फिर भी कहोगी,
मुझे भूलने की आदत है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें