बुधवार, 9 मार्च 2011

बहुत याद आया

जब भी कभी आइना मुस्कुराया , मुझे मेरा क़स्बा बहुत याद आया।

कभी पहले, जब गिरता था मैं फिसलकर ,
बहुत लोग कहते थे चलना संभलकर।
अकेले में जब मैं कभी लडखडाया,
मुझे मेरा क़स्बा बहुत याद आया ।

वहां सब थे अपने , थे मीठे ही सपने।
था सुनता मैं लोरी, जो लगे पलकें झुकने।
यहाँ स्याह दिन है , है सर पे न साया।
मुझे मेरा क़स्बा बहुत याद आया.

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