कभी पहले, जब गिरता था मैं फिसलकर ,
बहुत लोग कहते थे चलना संभलकर।
अकेले में जब मैं कभी लडखडाया,
अकेले में जब मैं कभी लडखडाया,
मुझे मेरा क़स्बा बहुत याद आया ।
वहां सब थे अपने , थे मीठे ही सपने।
था सुनता मैं लोरी, जो लगे पलकें झुकने।
यहाँ स्याह दिन है , है सर पे न साया।
मुझे मेरा क़स्बा बहुत याद आया.
यहाँ स्याह दिन है , है सर पे न साया।
मुझे मेरा क़स्बा बहुत याद आया.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें