मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

Bikhre sher

तलाशें अब तलक अपनी जड़ें, मुझमें मेरे अपने,
वो शायद भूल बैठे हैं, मैं अब भी बम्बई में हूँ।

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

Bikhre sher

मुझे लगता है अच्छा, शादियों में रात भर जगना,
मैं देखूँ जुड़ते रिश्ते, तो मेरी आँखें नहीं थकतीं।

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

Bikhre sher

जो होना सच है उनका, अब तलक तो आ भी जाते वो,
हरेक पत्थर के आगे, हमने अपना सर झुकाया है।

सोमवार, 22 अप्रैल 2013

Bikhre sher

नहीं पहचानता हूँ, कौन सा गम है मेरे आगे,
नज़र में अश्क हों, तो सब यहाँ धुंधला सा दिखता है।

गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

Bikhre sher

मैं जोडूँ सौ दफे, पर सौ दफे फिर टूट जाते हैं,
ये मेरे हौसले, सारे मरासिम*, सब तमन्नाएँ।

* रिश्ते

Bikhre sher

नहीं दिखता है मेरी राह में, कोई मील का पत्थर,
मगर मालूम है मुझको, कि मंजिल दूर है मेरी।

Bikhre sher

उन्होंने कह के पुरसिस* का,कुरेदा ज़ख्म को कुछ यूँ,
मेरे इन आँसूओं को, और खारा कर गए हैं वो।

* हाल पूछना

Bikhre sher

भला कब तक करेंगे गुफ्तगू,इन बुतकदों* में हम,
यहाँ दम घुट रहा है, उठ के कमरे तक चले आओ।

* मंदिरों

सोमवार, 15 अप्रैल 2013

Bikhre sher

कटी है जिस तरह, उससे कोई शिकवा नहीं लेकिन,
कसक गुमनाम रहने की, जो थी सो अब भी कायम है।

Bikhre sher

दुआ के साथ पैसे थोड़े, अबके छोड़ आया हूँ,
सुना बेदाम चीज़ें, तुझ तलक अब जा नहीं पातीं।

बुधवार, 10 अप्रैल 2013

Bikhre sher

दुआएं भेज दूँ लेकिन, कहाँ तुम तक वो पहुचेंगी,
खुदाओं में हमारे और तुम्हारे,अब भी झगड़ा है।

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

Bikhre sher

हैं दो ही सूरतें जिनमें कोई दीवाना होता है,
यकायक प्यार में हो, या मुसलसल प्यार से खारिज।
* मुसलसल- लगातार

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

Ghazal

न जानूँ ख्वाब है कोई, इबारत या सनम की है,
कभी ऐसा भी लगता है, शरारत ये कलम की है।

वही है आरज़ू अब भी, जुनूँ वैसा ही पाने का,
नहीं टूटा हूँ, कोशिश खैर तूने दम-ब-दम की है।

बहुत आसान है कहना, वजह जाहिर न हो जब भी,
भुगतना होगा ही तुझको, ये गलती उस जनम की है।

बड़ा ही दोगला हूँ, अर्जियां खारिज जो हो जाएँ,
बुतों को देख कहता हूँ, ये सूरत ही वहम की है।

दफ़न हैं फाइलों में नज़्म मेरे, इक ज़माने से,
बहुत कुछ चाहने ने, चाह मेरी इक भसम की है।