सोमवार, 22 नवंबर 2010

पापा

एक हाथ से थामी थी आपने मेरी नन्ही उँगलियाँ
और दूसरे से रास्ता दिखाया था।
कभी कहानियाँ सुनाकर, कभी प्यार से समझाकर।
आज भी उसी रास्ते पर चला हूँ मैं,
कई बार डगमगाया, लडखडाया, पर आपने थाम ली मेरी नन्ही उँगलियाँ।
और कहा "try, try, till you succeed".

अब भी बहुत लम्बा सफ़र है तय करना,
रास्ता शायद पता है मुझे, और डर भी नहीं लगता अब,
क्योंकि जानता हूँ,
थाम लेंगे एक हाथ से आप मेरी नन्ही उँगलियाँ ......

रविवार, 7 नवंबर 2010

क्या सोचा है...

क्या सोचा है लाइफ के बारे में?
उस दिन पूछा था तुमने ...
तकरीबन ९ बजे होंगे,
इक्का-दुक्का लोग हॉस्टल की सडकों पर
धुआंई ठहाकों के साथ घूम रहे थे.
आखिरी दिन था कॉलेज का शायद ...

खैर तुमने पूछा था ...
"क्या सोचा है लाइफ के बारे में "।

मैं यक -ब -यक सहम सा गया .
टाल दी बात ये कह कर की,
देखा है कभी लैम्प पोस्ट को ..
कितना करीब है ये और रौशनी भी है तेज ,
फिर क्यूँ भागूं मैं चाँद के पीछे ...

तुम हँस दिए, सर पे हाथ फेरा और कहा खुदा हाफिज़...

तब से आज तक शक्ल नहीं देखी तेरी, बस कुछ आवाजें हैं
जो अँधेरे में भी बज उठती हैं, और पूछती हैं...
"क्या सोचा है लाइफ के बारे में"?