सोमवार, 27 मई 2013

Ghazal

इश्क मेरे लिए ये क्या लाया,
इक खलिश, मुफलिसी, कज़ा लाया।

सारी यादें, सभी पुराने ख़त
उफ़ ये तूफ़ान क्या उठा लाया।

दाम अच्छे मुझे भी मिल जाते,
मैं अना अपनी, पर बचा लाया।

है फ़रक कहने और करने में,
ये नया रोग क्या लगा लाया।

वक़्त है रुखसती का, चलता हूँ,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।

खलिश- pang
मुफलिसी- poverty
कज़ा- death
अना- ego

Ghazal

दुशाले बादलों के जब भी, हैं ओढ़े सितारों ने,
जलेगा किस तरह चूल्हा, यही सोचा हजारों ने।

ये माना खोलतीं हैं, ज़ेहन की खिड़की- ओ- दरवाजे,
बहुत कम लोग हैं, जिनको है बख्शी छत अशआरों ने।

कनारे जिनकी चाहत में, समंदर पार की हमने,
गज़ब की बात है, हमको डुबोया उन कनारों ने।

मैं सज़दे सूखे गुल के करता हूँ, जबसे कहा उसने,
वो वापस आएगा, गरचे बुलाया फिर बहारों ने।

बिकाऊ मैं नहीं, जब बात ये जानी उसी दिन से,
झुका ली हार के नज़रें , मेरे आगे बजारों ने।

सोमवार, 6 मई 2013

Bikhre sher

----शहर----
1
शहद इक नाम का जिसके, लब-ए-नम्कीं पे चिपका है,
शहर क्या वो भी तुझको, इस कदर ही याद करता है?
2
शहर की टूटी सड़कें, भीड़, गड्ढ़े, चाय के खोखे,
कभी सोचा न था, इनपे भी हमको प्यार आएगा।
3
बड़ी थी आरज़ू मुझको, वो सीने से लगा लेगा,
शहर ने देखा है लेकिन, बहुत अन्जान नज़रों से।
4
मची है वैसी ही भगदड़, कि जैसे पहले होती थी,
मुझे लगता नहीं, जाने से मेरे फर्क आया है।