सोमवार, 6 मई 2013

Bikhre sher

----शहर----
1
शहद इक नाम का जिसके, लब-ए-नम्कीं पे चिपका है,
शहर क्या वो भी तुझको, इस कदर ही याद करता है?
2
शहर की टूटी सड़कें, भीड़, गड्ढ़े, चाय के खोखे,
कभी सोचा न था, इनपे भी हमको प्यार आएगा।
3
बड़ी थी आरज़ू मुझको, वो सीने से लगा लेगा,
शहर ने देखा है लेकिन, बहुत अन्जान नज़रों से।
4
मची है वैसी ही भगदड़, कि जैसे पहले होती थी,
मुझे लगता नहीं, जाने से मेरे फर्क आया है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें