शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

Ghazal

सलामत हैं मेरी रातें, है साबुत हर सहर मेरा,
मगर जो लुत्फ़ लेता था, कहाँ है वो जिगर मेरा?

मेरे ख्वाबों को लाखों चाहिए, तामील होने तक,
मेरा शायर मगर खुश है, उसे प्यारा सिफ़र मेरा।

मेरी हर बदगुमानी को, सही कहने लगे हैं सब,
मुझे अपना समझता ही नहीं, अब ये शहर मेरा।

परेशानी यही बस एक है, तनहाई चुनने में,
जो मैं चुप हो गया तो, होता है खामोश घर मेरा।

बड़ा होकर वो फिर अपनी, नयी दुनिया बसा लेगा,
बड़े नाजों से पलता है, मेरे दिल का ये डर मेरा।

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

Ghazal

तसल्ली की सदा आई, है इक बेशक्ल कोने से,
जो टूटे तो कहाँ जुड़ते, हैं कुछ रिश्ते पिरोने से।

करा रक्खी हैं ख़त की कॉपियाँ ,कुछ इस लिए क्यूँकी,
है धुल जाती इबारत, गमज़दा हर्फों पे रोने से।

नमी आँखों में है लेकिन, मेरे कुछ दोस्त कहते हैं,
कि मैंने पा लिया सबकुछ, फितूरे-इश्क खोने से।

हुआ मायूस लेकिन खैर, वो ये बात तो समझा,
खिलौने कब उगे हैं, इस तरह मिट्टी में बोने से।

वुजू करके लहू से, झुक गया हूँ सजदे में अक्सर,
बहुत खुश हूँ, मैं उसके हर जगह हो कर न होने से।

सोमवार, 25 नवंबर 2013

Bikhre sher

कमर पर बोझ है, झुक जाता हूँ हर बुत के आगे मैं,
अना मगरूर है लेकिन , झुकाए से नहीं झुकती।

अना- ego मगरूर- घमंडी, proud

शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

Bikhre sher

मुश्किल है यूँ लफ्जों को, नुमाइश पर लगा पाना,
कीमत कम तभी है फलसफों की, चप्पलों से भी।
 (Talking to a "True" Gandhian)

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

Ghazal

सुना जब बिक गया घर, शादियों की देनदारी से,
चमक फीकी पड़ी है चेहरे की, गोटा-किनारी से।

कमर रस्मे-परस्तिश में,मेरी अब है झुकी जाती,
बहुत उकता गया हूँ, बेवजह की खाकसारी से।

रहूँ जब होश में, तो सैकड़ों ग़म हैं सुलाने को,
तुम्हारी याद, बामुश्किल जगायी है खुमारी से।

सिवाए प्यार के तेरे, कमाई कुछ नहीं मेरी,
उमर कट जाएगी लेकिन, बस इतनी रेजगारी से।

चलो साझा करें हम, आज से सब गलतियाँ अपनी,
कहीं दूरी न बढ़ जाये, मुई मेरी- तुम्हारी से।

शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

Bikhre sher

कभी तो जिंदगी, मेरी भी देखे वाकया कोई,
फ़कत इक ख़्वाब पे ऐसे, भला कबतक लिखूँ नज्में।