इस सारी व्यवस्था में शांति बनाये रखने वाले चाहते हैं,
कि तुम देखो पर तुम्हे एहसास न हो दिखने का।
तुम अपने बहरेपन का ढोंग लिए सुनो,
हर घुटी हुई चीख को।
तुम बोलो पर ध्यान रहे,
आवाज़ बिलकुल नहीं आनी चाहिए।
क्योंकि उठती हुई आवाजों से
मच जायेगा कोलाहल, भंग होगी शांति और,
व्यर्थ जायेगा परिश्रम उन तथाकथिक शांतिदूतों का।
इसलिए इस व्यवस्था और फैली हुई शांति को,
हो रहे हादसों के बीच,
देखिये और देखते जाइये,
बस.... देखते जाइये।
सोमवार, 28 दिसंबर 2009
बस एक ख्वाब
एक ख्वाब बचाकर रखा है मैंने,
सबकी नज़र से, सिर्फ अपने लिए।
कोई अहमियत नहीं उसकी दुनिया के लिए पर,
जुडा है उसका एक-एक कतरा तुमसे।
मैं चाहता हूँ कि देख पाऊ तुम्हे,बस एक नज़र।
जानता हूँ जबकि कुछ नहीं कहना है मुझे,
(फिर कुछ क्यूँ अनकहा रहा हमारे बीच।)
बस मैं चाहता हूँ कि खो जाऊ गुमनामी के अँधेरे में,
तुम्हे देखने के बाद।
सबकी नज़र से, सिर्फ अपने लिए।
कोई अहमियत नहीं उसकी दुनिया के लिए पर,
जुडा है उसका एक-एक कतरा तुमसे।
मैं चाहता हूँ कि देख पाऊ तुम्हे,बस एक नज़र।
जानता हूँ जबकि कुछ नहीं कहना है मुझे,
(फिर कुछ क्यूँ अनकहा रहा हमारे बीच।)
बस मैं चाहता हूँ कि खो जाऊ गुमनामी के अँधेरे में,
तुम्हे देखने के बाद।
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