शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

Ghazal

अब स्याह निगाहों में, इक रंग गुलाबी है,
ये इश्क की लौ है जो, इस शब ने जला दी है।

रूटीन से जीने में ,तकलीफ नहीं  लेकिन,
क्यों नींद भला शब भर, आती है न जाती है।

कमरे में घुटन सी है, कुछ सोच नहीं पाता,
कमबख्त मुई खिड़की, खुलती ही ज़रा सी है।

जख्मों की दुकानों पर, मरहम है बहुत बिकता,
बम्बई के बजारों ने , ये बात सिखा दी है।

माना कि अना तुमको, करती थी बहुत रुसवा,
आ जाओ कि हमने वो, दीवार गिरा ली है।

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

Ghazal

सुझाने कुछ नयी तरकीब, सब बेनाम आये हैं,
शहर में गर्म है चर्चा, कि हम नाकाम आये हैं।

बहुत गाढ़े समय में, तुमने पकड़ाए थे जो रूपये,
कमाए लाख फिर भी, वो ही अब तक काम आये हैं।

उन्ही के नाम पर आती थी, मेरी चिट्ठियाँ सारी,
पिता खुश हैं कि ख़त अबके, हमारे नाम आये हैं।

मेरा घर है महकता रात भर, मीठी सी खुशबू से,
कि माँ के साथ परसों, टोकरी भर आम आये हैं।

भटक कर थक चुके हैं, जिन्दगी को ढूँढ करके अब,
तुम्हारे पहलू में करने, जरा आराम आये हैं।

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

Ghazal

छुपा डाले हैं दिल के दाग सब, मँहगे लिबासों में,
चलो कुछ होश बाकी है अभी, हम बद-हवासों में।

कोई तो मयकदे की टेबलों को, साफ़ कर दे अब,
फ़साने आह भरते हैं, यहाँ खाली गिलासों में।

फरक दिखता नहीं है, बंद आँखों से हमें फिर भी,
चमक मलमल की ढूंढे फिरते हैं, मोटे कपासों में।

बहुत ऊँची फ़सीलें हैं, तेरे चारों तरफ जानम,
हमारी सीढियाँ कमज़ोर हैं, घुन है असासों में।

मुझे अखबार की सुर्खी हमेशा झूठ लगती है,
खबर सच की लगाई है, यूँही अक्सर कयासों में।

 फ़साना- story फ़सीलें- walls असास- base कयास-guess

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

Bikhre sher

बालों में यूँ तो आ गयी, चाँदी- लटें भी कुछ,
ये दिल मगर, समझा है कब उम्रों की सरहदें।

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

Ghazal

कल ही कहूँगा, आज तो वो सोगवार है,
दिल तब सुनेगा मेरी, इतना ऐतबार है।

आ चूम के पेशानी, अब मैं अलविदा कहूँ,
पर याद ये भी रख, कि तेरा इंतज़ार है।

कैदे-अना में है, कोई है चाहतों में बंद,
खुद पे किसी भी शख्स का ,कब इख़्तियार है।

मूँदे पलक है, भागता रहता है रात- दिन,
जाने शहर ये किस लिए, यूँ बेक़रार है।

सोचा सिवाए खुद के भी, सोचूँगा कुछ मगर,
खुद में उलझके आज भी, दिल शर्मसार है।

अब भी हैं सारी मुश्किलें, लेकिन तुम्हारे साथ,
हर खार जैसे बन गया, इक हरसिंगार है।

सोगवार : ग़मगीन
पेशानी: forehead
कैदे-अना : in captivity of ego
इख़्तियार: कब्ज़ा,control
खार: काँटा

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

Bikhre sher

आज फिर से हैं चुप ये दरवाजे, घर से आहट कोई नहीं आती,
आज फिर सो गया है वो थककर,आज फिर देर हो गयी शायद।

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

Bikhre sher

अदीबों* को नहीं कल से , कोई हिचकी सताएगी,
किताबें अपनी मैंने , आज सब तुलवाके बेचीं हैं।

अदीब - writer,thinker