adhbune khwab
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बुधवार, 4 दिसंबर 2013
Bikhre sher
आज फिर से हैं चुप ये दरवाजे, घर से आहट कोई नहीं आती,
आज फिर सो गया है वो थककर,आज फिर देर हो गयी शायद।
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