गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

Ghazal

कल ही कहूँगा, आज तो वो सोगवार है,
दिल तब सुनेगा मेरी, इतना ऐतबार है।

आ चूम के पेशानी, अब मैं अलविदा कहूँ,
पर याद ये भी रख, कि तेरा इंतज़ार है।

कैदे-अना में है, कोई है चाहतों में बंद,
खुद पे किसी भी शख्स का ,कब इख़्तियार है।

मूँदे पलक है, भागता रहता है रात- दिन,
जाने शहर ये किस लिए, यूँ बेक़रार है।

सोचा सिवाए खुद के भी, सोचूँगा कुछ मगर,
खुद में उलझके आज भी, दिल शर्मसार है।

अब भी हैं सारी मुश्किलें, लेकिन तुम्हारे साथ,
हर खार जैसे बन गया, इक हरसिंगार है।

सोगवार : ग़मगीन
पेशानी: forehead
कैदे-अना : in captivity of ego
इख़्तियार: कब्ज़ा,control
खार: काँटा

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