ख्वाब में कल फिर से दिखे,
मुझे वो सारे लोग।
रोज़ की तरह,
देर तक खटखटाते रहे,
दरवाजा कमरे का।
तंग आकर सोचा,
ख्वाब में ही सही,
दरवाजा खोल तो दूं।
छिट्कनी खोलते ही,
ख़ुशी से,
दोगुना सा
हो गया कमरा।
सारे पुराने लोग
सिमट आये उसमें,
पहले की ही तरह।
अजीब सी
हड़बोंग सी मच गयी,
जाने कितने कंधे
कितने आंसूओं को,
सहेजने लगे।
हँसी आँखों से
बहती रही बदस्तूर, बेमतलब।
किसी ने आते ही
ताश के पत्ते बिखेर दिए
बिस्तर पे,यूहीं... बेवजह।
एक पुराना कंप्यूटर,
कराहता रहा
ब्रायन एडम्स और
गुलाम अली की धुनों पर।
शराब की एक बूँद पे
झूमता रहा
पूरा कमरा देर तक।
कोई कोने में लेट कर,
बड़े जतन से
बनाता रहा अच्छी- बुरी,
तस्वीरें मेरी।
और मैं आईने के अक्स से,
मिलाता रहा तस्वीरों को।
यकायक आईने में,
बदलने लगे तआस्सुरात,
चेहरे के।
मानो ख्वाब में,
दस साल गुज़र गए हों।
सब सहम सा गया,
चेहरों पे सबकी,
पकी दाढ़ियों के
बाल नज़र आने लगे।
बुरा लगा, यूं गुज़रना
वक़्त का,
रूठ कर
आइना तोड़ दिया है।
वक़्त ने
समेट लिए हैं,
तिलिस्म सारे।
छनाके से
ख्वाब भी
टूट गया है अब।
लेकिन सोफे पर
अब भी पड़ी हैं,
कुछ धुंधली,
ब्लैक एंड व्हाइट
तस्वीरें,
कॉलेज की।
मुझे वो सारे लोग।
रोज़ की तरह,
देर तक खटखटाते रहे,
दरवाजा कमरे का।
तंग आकर सोचा,
ख्वाब में ही सही,
दरवाजा खोल तो दूं।
छिट्कनी खोलते ही,
ख़ुशी से,
दोगुना सा
हो गया कमरा।
सारे पुराने लोग
सिमट आये उसमें,
पहले की ही तरह।
अजीब सी
हड़बोंग सी मच गयी,
जाने कितने कंधे
कितने आंसूओं को,
सहेजने लगे।
हँसी आँखों से
बहती रही बदस्तूर, बेमतलब।
किसी ने आते ही
ताश के पत्ते बिखेर दिए
बिस्तर पे,यूहीं... बेवजह।
एक पुराना कंप्यूटर,
कराहता रहा
ब्रायन एडम्स और
गुलाम अली की धुनों पर।
शराब की एक बूँद पे
झूमता रहा
पूरा कमरा देर तक।
कोई कोने में लेट कर,
बड़े जतन से
बनाता रहा अच्छी- बुरी,
तस्वीरें मेरी।
और मैं आईने के अक्स से,
मिलाता रहा तस्वीरों को।
यकायक आईने में,
बदलने लगे तआस्सुरात,
चेहरे के।
मानो ख्वाब में,
दस साल गुज़र गए हों।
सब सहम सा गया,
चेहरों पे सबकी,
पकी दाढ़ियों के
बाल नज़र आने लगे।
बुरा लगा, यूं गुज़रना
वक़्त का,
रूठ कर
आइना तोड़ दिया है।
वक़्त ने
समेट लिए हैं,
तिलिस्म सारे।
छनाके से
ख्वाब भी
टूट गया है अब।
लेकिन सोफे पर
अब भी पड़ी हैं,
कुछ धुंधली,
ब्लैक एंड व्हाइट
तस्वीरें,
कॉलेज की।