बुधवार, 26 जून 2013

Nostalzia

ख्वाब में कल फिर से दिखे,
मुझे वो सारे लोग।
रोज़ की तरह,
देर तक खटखटाते रहे,
दरवाजा कमरे का।
तंग आकर सोचा,
ख्वाब में ही सही,
दरवाजा खोल तो दूं।

छिट्कनी खोलते ही,
ख़ुशी से,
दोगुना सा
हो गया कमरा।
सारे पुराने लोग
सिमट आये उसमें,
पहले की ही तरह।
अजीब सी
हड़बोंग सी मच गयी,
जाने कितने कंधे
कितने आंसूओं को,
सहेजने लगे।
हँसी आँखों से
बहती रही बदस्तूर, बेमतलब।

किसी ने आते ही
ताश के पत्ते बिखेर दिए
बिस्तर पे,यूहीं... बेवजह।
एक पुराना कंप्यूटर,
कराहता रहा
ब्रायन एडम्स और
गुलाम अली की धुनों पर।
शराब की एक बूँद पे
झूमता रहा
पूरा कमरा देर तक।
कोई कोने में लेट कर,
बड़े जतन से
बनाता रहा अच्छी- बुरी,
तस्वीरें मेरी।
और मैं आईने के अक्स से,
मिलाता रहा तस्वीरों को।

यकायक आईने में,
बदलने लगे तआस्सुरात,
चेहरे के।
मानो ख्वाब में,
दस साल गुज़र गए हों।
सब सहम सा गया,
चेहरों पे सबकी,
पकी दाढ़ियों के
बाल नज़र आने लगे।

बुरा लगा, यूं गुज़रना
वक़्त का,
रूठ कर
आइना तोड़ दिया है।
वक़्त ने
समेट लिए हैं,
तिलिस्म सारे।
छनाके से
ख्वाब भी
टूट गया है अब।

लेकिन सोफे पर
अब भी पड़ी हैं,
कुछ धुंधली,
ब्लैक एंड व्हाइट
तस्वीरें,
कॉलेज की।

शुक्रवार, 21 जून 2013

Bikhre sher

चलो मिल लें कहीं हम, अब किसी बाबत, किसी तरहा,
कि अब तो ख्वाब में भी, शक्लें सारी धुंधली दिखती हैं।

बुधवार, 19 जून 2013

Ghazal

हमेशा कल पे हमने देखी टलती, चाँद सी रोटी,
धुँआई अश्क में बेबस सिसकती, चाँद सी रोटी।

तुम्हारी अलहदा ख्वाहिश, तुम्हारे अलहदा सपने,
हमें तो ख्वाब में भी बस है दिखती, चाँद सी रोटी।

हो झगड़ा तेरा-मेरा, इसका-उसका जिसका-तिसका हो,
ये कैसी आग है फैली, कि जलती चाँद सी रोटी।

शहर में बेचने वाले, बहुत कुछ बेच देते हैं,
यहाँ सबसे है लेकिन, मंहगी बिकती चाँद सी रोटी।

सुबह से शाम तक पीछा करूँ, मैं इक निवाले का,
मगर कमबख्त कब देखें, है थमती चाँद सी रोटी।

बुधवार, 5 जून 2013

Ghazal

गिला क्यूँ हो, जो हमदोनों नदी के दो किनारे हैं,
हमें इन पानियों का पुल, हमेशा जोड़े रखता है।

अगर मिल जाए सब, इन्सां बिला मकसद न हो जाए,
इसी से, कद से छोटी चादरें वो ओढ़े रखता है।

न जाने किस वजह से, तू खफा मुझसे लगे रहने,
यही डर बुत की जानिब, मुझ को अब तक मोड़े रखता है।

ये तय है आँधियों में, कश्ती उसकी डूब जाएगी,
वो जो खुद की बजाए, सब खुदा पे छोड़े रखता है।

सोमवार, 3 जून 2013

Bikhre sher

यही इक बात तेरी, मुझको मुझसे जोड़े रखती है,
कि मैं टूटा अगर, तो तुम भी मुझ संग टूट जाओगे।