रविवार, 23 जनवरी 2011

अथर्व, तुम्हारे लिए


जुड़ना एक नाम का, शरीर से
कोई छोटी घटना नहीं।
किसी नोवेल का प्लाट है ये,
या किसी ग़ज़ल का पहला हर्फ़।

आज एक नाम देकर तुम्हें, खुश हो जायेंगे सब।
पर तुम... तुम्हें तो शायद पता भी नहीं होगा
कि एक नाम के साथ, मेरे सपनो का बोझ भी,
ता-उम्र चलेगा तुम्हारे साथ।

कुछ ख्वाब अधबुने से दूंगा तुम्हें, विरासत में,
और उसी बोझ तले बड़े होगे तुम।
मैं खुश होता देखता रहूँगा तुम्हें, दबते उस बोझ तले।
और एक दिन, इन्ही पन्नो पे लिखोगे तुम
अपने अधबुने ख्वाबों की कहानी।

जानता हूँ, पर क्या करूँ
एक अजीब, सदियों पुरानी परंपरा है ये विरासत।