ये जो दरमयाँ है हमारे- तुम्हारे,
उसी रब्त से कम हुए फासले हैं।
झुलसते हुए दिन लगें चाँद-रातें,
मुहब्बत के कैसे नए सिलसिले हैं।
है मुश्किल बहुत चाहना पर करें क्या,
अजब सी वो खुद से अहद कर चले हैं।
तुझे सोच कर बेसबब मुस्कुरा दूँ,
वजह सोचने में कई मस-अले हैं।
मैं पढ़ पाऊँ तुझको, तू मुझको समझ ले,
इसी आरजू में कई शब् ढले हैं।
तेरे हाथ को थाम लूँ, दे इजाज़त,
पसारे हुए बाँह मीलों चले हैं।
उसी रब्त से कम हुए फासले हैं।
झुलसते हुए दिन लगें चाँद-रातें,
मुहब्बत के कैसे नए सिलसिले हैं।
है मुश्किल बहुत चाहना पर करें क्या,
अजब सी वो खुद से अहद कर चले हैं।
तुझे सोच कर बेसबब मुस्कुरा दूँ,
वजह सोचने में कई मस-अले हैं।
मैं पढ़ पाऊँ तुझको, तू मुझको समझ ले,
इसी आरजू में कई शब् ढले हैं।
तेरे हाथ को थाम लूँ, दे इजाज़त,
पसारे हुए बाँह मीलों चले हैं।