आजिज़ हो तुम आज इन सवालों से,
क्या नया किया उसने?
क्या आज उसने मेरा नाम लेकर पुकारा मुझे?
क्या आज उसके कदम बढ़ सके खुद-ब-खुद?
इन सवालों पर झुंझलाकर कहती हो कि,
ये सब वक़्त के साथ ही होगा,
अभी बहुत छोटा है हमारा बच्चा.
पर मैं बेताब सा इस इंतज़ार में हूँ,
कि कब वो बड़ा हो और थाम ले,
मेरे सपनो कि ऊँगलियाँ.
इस सोच से कभी-कभी डर भी जाता हूँ,
क्या पता कि सपनो के साथ वो इतना आगे न चला जाये
कि हम सब धुंधले से दिखें उसे.
मेरी तरह वो भी बस हफ्ते के १० मिनट दे पाए घर को.
डरता हूँ कहीं किसी सूने से घर में बैठे हम दोनों,
खाली आँखों से ये सवाल ना करें,
" तुम्हे नहीं लगता कि बच्चे कुछ जल्दी बड़े हो गए"...
बहुत सुन्दर .... डरता हूँ कहीं किसी सूने से घर में बैठे हम दोनों,
जवाब देंहटाएंखाली आँखों से ये सवाल ना करें,
" तुम्हे नहीं लगता कि बच्चे कुछ जल्दी बड़े हो गए"...