सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

जगजीत के लिए..

जिसने पहले- पहल ग़ालिब से मिलाया था मुझे,
तपती दुपहरी में देस का चाँद दिखाया था मुझे,
वो कि जिसने मुझे रातों को जगाये रक्खा,
पौ फटे रोज़, फिर जिसने सुलाया था मुझे,

हरेक नज़्म थी ऐसी, कि इबादत हो कोई,
किसी फकीर के होठों पे शिकायत हो कोई,
वो तो जिस राह से गुजरा, वहीँ पे खेमे लगे,
यूँ लगा, शख्स नहीं जैसे बगावत हो कोई.

वो जो हरदिल-अजीज़ था,मेरा था राहनुमा,
सुना है आज वो शख्स मुझे छोड़ गया.

जगजीत के लिए (जो अब भी यादों में है)

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