रविवार, 23 जनवरी 2011

अथर्व, तुम्हारे लिए


जुड़ना एक नाम का, शरीर से
कोई छोटी घटना नहीं।
किसी नोवेल का प्लाट है ये,
या किसी ग़ज़ल का पहला हर्फ़।

आज एक नाम देकर तुम्हें, खुश हो जायेंगे सब।
पर तुम... तुम्हें तो शायद पता भी नहीं होगा
कि एक नाम के साथ, मेरे सपनो का बोझ भी,
ता-उम्र चलेगा तुम्हारे साथ।

कुछ ख्वाब अधबुने से दूंगा तुम्हें, विरासत में,
और उसी बोझ तले बड़े होगे तुम।
मैं खुश होता देखता रहूँगा तुम्हें, दबते उस बोझ तले।
और एक दिन, इन्ही पन्नो पे लिखोगे तुम
अपने अधबुने ख्वाबों की कहानी।

जानता हूँ, पर क्या करूँ
एक अजीब, सदियों पुरानी परंपरा है ये विरासत।

3 टिप्‍पणियां:

  1. badhiya...Welcome Atharva...This is your uncle. And i will help you with the Virasat thing. Don't worry :)

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  2. kaaafi achchi likhi hai. aur sabse achchi baat hai ki sab jaaante hue bhi hum yahi karte rahe hain aur yahi karte rahenge.
    Chandan bhai, let's break the trend this time. Ab tak ke sab sapne chhod ke ab atharv ke sapne dekhte hain aur uske sapne me jeete hain.... :)

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