बुधवार, 5 जून 2013

Ghazal

गिला क्यूँ हो, जो हमदोनों नदी के दो किनारे हैं,
हमें इन पानियों का पुल, हमेशा जोड़े रखता है।

अगर मिल जाए सब, इन्सां बिला मकसद न हो जाए,
इसी से, कद से छोटी चादरें वो ओढ़े रखता है।

न जाने किस वजह से, तू खफा मुझसे लगे रहने,
यही डर बुत की जानिब, मुझ को अब तक मोड़े रखता है।

ये तय है आँधियों में, कश्ती उसकी डूब जाएगी,
वो जो खुद की बजाए, सब खुदा पे छोड़े रखता है।

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