दुशाले बादलों के जब भी, हैं ओढ़े सितारों ने,
जलेगा किस तरह चूल्हा, यही सोचा हजारों ने।
ये माना खोलतीं हैं, ज़ेहन की खिड़की- ओ- दरवाजे,
बहुत कम लोग हैं, जिनको है बख्शी छत अशआरों ने।
कनारे जिनकी चाहत में, समंदर पार की हमने,
गज़ब की बात है, हमको डुबोया उन कनारों ने।
मैं सज़दे सूखे गुल के करता हूँ, जबसे कहा उसने,
वो वापस आएगा, गरचे बुलाया फिर बहारों ने।
बिकाऊ मैं नहीं, जब बात ये जानी उसी दिन से,
झुका ली हार के नज़रें , मेरे आगे बजारों ने।
जलेगा किस तरह चूल्हा, यही सोचा हजारों ने।
ये माना खोलतीं हैं, ज़ेहन की खिड़की- ओ- दरवाजे,
बहुत कम लोग हैं, जिनको है बख्शी छत अशआरों ने।
कनारे जिनकी चाहत में, समंदर पार की हमने,
गज़ब की बात है, हमको डुबोया उन कनारों ने।
मैं सज़दे सूखे गुल के करता हूँ, जबसे कहा उसने,
वो वापस आएगा, गरचे बुलाया फिर बहारों ने।
बिकाऊ मैं नहीं, जब बात ये जानी उसी दिन से,
झुका ली हार के नज़रें , मेरे आगे बजारों ने।
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