ग़मज़दा पलकें न देखी, ये चलो अच्छा हुआ।
पूछ बैठे हाल क्या है, ये चलो अच्छा हुआ।
तुम अगर कुछ फूल लाते, तो नयी क्या बात थी,
सारे चुनकर खार लाये, ये चलो अच्छा हुआ।
हँस के जो दो बात कर ली, भींग सी पलकें गयी,
तल्खिये- अंदाज़ भूले, ये चलो अच्छा हुआ।
तेरी महफ़िल में न आते, मुतमईन से रहते हम,
बेरुखी ने जान भर दी, ये चलो अच्छा हुआ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें