adhbune khwab
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शनिवार, 26 मार्च 2011
डर उजाले से
देखता रहता है टकटकी बांधे, रौशनी को देर तक,
जाने क्या सोच कर मुस्कुराता है, झेंप जाता है।
पलकें खोल कर बार बार देखता है, मुतमईन हो जाता है।
मेरे बच्चे ने अभी उजालों से डरना नहीं सीखा।
1 टिप्पणी:
Ajit Singh
14 अप्रैल 2011 को 2:03 am बजे
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