शनिवार, 26 मार्च 2011

बेबसी

चन्द सिक्के फटी जेब में लिए , बराए- उम्मीद मुस्कुराता हूँ मै।
रोज अपने संगे दिल को अश्कों से पिघलाता हूँ मैं।

दौलते इश्क कब का खो भी चुका, रो भी चुका,
जीतने नफरत जहाँ की, हर रोज चला जाता हूँ मैं।

देखना चाहूँ जो खुद को, आईना मुँह फेर ले,
क़त्ल कर के खुद अना का, खुद ही शरमाता हूँ मैं।

तुम भी मानोगे, जो कहता हूँ मैं अक्सर रात-दिन,
इस भरी महफ़िल की तन्हाई से घबराता हूँ मैं।



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