adhbune khwab
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रविवार, 27 फ़रवरी 2011
आज फिर छोड़ गए तुम हमको..
आज फिर एक अधूरी राह मिली,
आज फिर छोड़ गए तुम हमको।
एक दरमियाँ आज भी रहा कायम,
चाँद शब भर मिला उदास हमको।
यूं भी तनहाइयों में क्या करते,
रात भर शाम ही फिर से जी ली है,
और फिर एक झूठे गुस्से से पूछा है,
क्यूँ आज फिर छोड़ गए तुम हमको?
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