रविवार, 27 फ़रवरी 2011

एक तन्हा शहर..

भीड़ इतनी कि इस शहर में हर कन्धा ज़ख़्मी मिलेगा तुझे,
फिर भी दिल पसीजे ऐसा कोई दर्द नहीं।
सैकड़ों की भीड़ में सैकड़ों ही तन्हा हैं।
शब भर चाँद भी तन्हा डोलता है यहाँ।
उफक समेटता है रात की चादर,
दे के एक और बोझल दिन।

किसी एक के जाने से शहर कितना तन्हा हो जाता है,
है ना....

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