adhbune khwab
A blog on Poetry, Nazms and Ghazals
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रविवार, 27 फ़रवरी 2011
सुबह की शुरुआत
रात की सियाही आँखों में घुलते ही,
चमकती रौशनी में घोड़ों की दौड़ लगी।
एक मीठे सपनों में खोयी हुई नींद को,
ठन्डे स्पर्श के अनुभव ने तोडा।
माँ ने मंदिर से लौटकर कुछ फूल सिरहाने रखते हुए,
हाथों को सर पे फेर दिया,
और सुबह की शुरुआत हुई।
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