शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

ये मेरी सोहबत नहीं..

मैं तुम्हें अब भूल जाऊँ ,ये मेरी फितरत नहीं।
तू मुझे पर याद रक्खे, ये तेरी आदत नहीं।

हमसफ़र हो सकता हूँ मैं, दर्देगम की राह में,
मुश्किलों में रहनुमा हो, ये मेरी सोहबत नहीं।

पहले थे हम मोहतरम, अब "तू" का उन्वा हो गए,
आइना भी बोल उट्ठा, कुछ बची शोहरत नहीं।

जब तुम्हें समझा सकूँ, अरसे से हूँ मैं मुन्तजिर,
उससे पहले टूट जाऊँ, इतनी कम उल्फत नहीं।

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