adhbune khwab
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रविवार, 27 फ़रवरी 2011
हम रदीफ़ शेर
१ (विनीत)
मुझे रंज हिज्र से हुआ नहीं, कि दुआ में कोई सवाल हो,
तेरे हिज्र में भी रुबाब है, तेरा वस्ल हो तो कमाल हो।
२ (अरविन्द)
मुझे तिश्नगी कि तलाश थी, तू है जामे-इश्क भरा हुआ,
लगे डर अभी भी हर एक नफस, कहीं कल न तुझको मलाल हो।
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