शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

त्रिवेणी (inspired by Gulzar)

१।
पौ फटे से टांक लेता हूँ, अदद इक दिन,
शाम तक फिर तार-तार हो जाती है चादर।

उलझना होगा कल सुबह, मुझे फिर सूई- धागों से।
२।
याद नहीं, कभी गुफ्तगू हुई कि नहीं,
जब भी मिले हम राह में, रस्मन मुस्कुराये हैं।

आइनों से गहरी यारी की नहीं जाती।
३।
है सोचा जब, कि लिखूं नज़्म फिर से इक नयी कोई,
हर दफा देखा है मुड़कर चाँद की जानिब।

गोया चाँद है, बस हामिला1 मेरे ख्यालों से।
1. pregnant


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