शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

एक मुद्दत से हूँ बैठा कि कोई बात चले

एक मुद्दत से हूँ बैठा कि कोई बात चले।

तुम पूछ लो कुछ, जिसमे कोई सवाल ना हो,
मैं दूं जवाब, जो दरअसल जवाब ना हो।

तेरे लफ़्ज़ों से ना तल्खी1 की महक आये मुझे,
जो दिखे मुझको वो ताअस्सुर2 भी खुशगवार रहे।

ना हो वो रोज़ की बातें कि जैसे ख़बरें हों,
कहूं मैं कुछ, तो न लगे कि अभी झगडे हों।

हो गर जिरह3 भी तो बातों के एक से सिरे निकलें,
लफ्ज़ की राहों में गुल ही हों, कांटें न जड़े निकलें।

सिक्के में, जिंदगी के, पहलू मिले तो एक मिले,
एक मुद्दत से हूँ बैठा कि कोई बात चले।



1. bitterness
2. expressions
3. argument

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