जिंदगी इन दिनों कुछ बेतरतीब सी है।
कुछ इस तरह भटकती हैं इच्छाएं,जैसे उठता है अभी-अभी बुझे किसी चराग से धुआं ।
जैसे फैला हो बाढ़ का पानी, दूर तक .... खेतों में।जैसे बेवजह आवाजें करते हों परिंदे, आधी रात के बाद।
जानता हूँ कि अमरबेल सी लिपटी रहेंगी ये,
तब तक, जब कि छोड़ न दूं कोशिशें,
फिर एक दिन सब सहज हो जायेगा,
पर अभी....अभी तो जिंदगी बेतरतीब सी है।
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