जलजला ला के भला, आप भी क्या पाएंगे,
बाढ़ आई, तो घर दोनों ही जानिब के डूब जायेंगे।
जो मुझे छोड़ गए राहे- मुहब्बत में कभी,
नफरतों के दौर में, अब लौट के क्या आयेंगे।
घर में हो फाका तो, उज्र है रमजान में भी,
रोज़ यही फ़िक्र,रोज़ा खोल के क्या खायेंगे।
हमने लगा दी दांव पे अपनी अना भी आज,
देखें कि अबके जीत के हम कौन सी शय लायेंगे.
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