कितने अजीब हैं ये बादल भी,
महीनों तक सहेजते रहते हैं ग़मों को,
रात- दिन भटकते हुए, ग़मगीन शक्लें बनाकर।
कभी छुपाते हैं चाँद, सूरज, सय्यारों को,
कभी खुद ही छुप जाते हैं।
और जब पलकों तक भर आता है गम,
तो बस उड़ेल देते हैं,
भीग जाती है जमीं सर से पैरों तक।
बहुत समझाया कि दूसरों के गम सहेजना इतना आसान नहीं।
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