अपनी मर्ज़ी से वो जागता-सोता है अभी,
ग़म हैं सच्चे, हँसी उसकी भी सच ही है अभी।
अजनबियों से भी प्यार से वो मिलता है,
खार सी दुनिया में फूलों की तरह मिलता है।
कब वो कहीं दो घडी टिक के भी भला रहता है,
वो तो खुशबू है हवाओं की तरह बहता है।
छीन ले कोई खिलौना, तो झुंझलाता है,
अनकहे डर से कभी, खुद ही सहम जाता है।
मेरा बच्चा नाकामियों से गाफिल भी नहीं,
शुक्र है, मेरी तरह rat-race में शामिल भी नहीं।
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