शुक्रवार, 10 जून 2011

बरसों तक

एक फूल संभाल कर रखा था मैंने, बरसों तक,
देखना अब भी कोट की अगली जेब में पड़ा हो शायद।

वक़्त के साथ सूख भले ही गया हो,
पर रंग-ओ-बू अब भी बाकी होगी उसमे।
टटोलने पर शायद, यादों में, वो दिन भी मिल जाये कहीं।
देखना, मैं अब भी बस स्टैंड पर इंतज़ार तो नहीं कर रहा।

उत्सुक, चौकन्ना सा, हर आने-जाने वालों से नज़रें चुराता हुआ कोई दिखे,
तो पास बुला लेना।
क्या पता, एक फूल संभाल कर रखा हो उसने भी बरसों तक।

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