मैं जैसा हूँ, वैसा ही मुझे स्वीकार करता है,
मेरा महबूब बिना बदले ही मुझको प्यार करता है.
फ़कत इक हौसला दिल का, भले हों बाजू नाकारा,
बिना पतवार के, मंझधार को भी पार करता है.
तुम्हें मैं आजकल के रहनुमा के रंग क्या बोलूं,
कभी फैलाता है दामन, कभी वो वार करता है.
कभी कंचे, कभी गोले... बहुत सी खुशियाँ लाता था,
पशेमा हूँ कि अब मुझको, वो " जी सरकार" करता है.
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