एक किन्तु पर थमा हुआ है, अर्धसत्य सा मेरा जीवन.
प्रत्येक क्षण डरता हूँ अघटित, अकथित संभावनाओं से,
तथापि पथभ्रष्ट नहीं हुआ,
गतिमान हूँ, विपरीत इस भेडचाल के.
अब अज्ञातवास के आखिरी सत्र में,
कहाँ मुड़ सकूंगा, प्रकाशित दिशाओं की ओर.
मित्र, तुम्हे शुभकामनायें मेरी,
चुन लो नया पथ तुम.
पथप्रदर्शक नहीं, अज्ञातवासी हूँ मैं,
ना लक्ष्य का भान है, ना ही चिंता उसकी.
पग भ्रमित हैं मेरे, मेरी ही भांति.
ये थमते नहीं, उस क्षण भी,
जब एक किन्तु पर थमा हो जीवन..
कल 06/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
गहरी अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंएक किन्तु पर थमा हुआ है, अर्धसत्य सा मेरा जीवन....
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन.... सुन्दर रचना..
सादर...