शनिवार, 6 अगस्त 2011

किन्तु पर थमा जीवन

एक किन्तु पर थमा हुआ है, अर्धसत्य सा मेरा जीवन.

प्रत्येक क्षण डरता हूँ अघटित, अकथित संभावनाओं से,

तथापि पथभ्रष्ट नहीं हुआ,

गतिमान हूँ, विपरीत इस भेडचाल के.

अब अज्ञातवास के आखिरी सत्र में,

कहाँ मुड़ सकूंगा, प्रकाशित दिशाओं की ओर.

मित्र, तुम्हे शुभकामनायें मेरी,

चुन लो नया पथ तुम.


पथप्रदर्शक नहीं, अज्ञातवासी हूँ मैं,

ना लक्ष्य का भान है, ना ही चिंता उसकी.

पग भ्रमित हैं मेरे, मेरी ही भांति.

ये थमते नहीं, उस क्षण भी,

जब एक किन्तु पर थमा हो जीवन..

3 टिप्‍पणियां:

  1. कल 06/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. एक किन्तु पर थमा हुआ है, अर्धसत्य सा मेरा जीवन....

    गहन चिंतन.... सुन्दर रचना..
    सादर...

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