इस मतलबी ज़हां में अहसान बेचता हूँ,
अश्कों के बदले अब भी मुस्कान बेचता हूँ.
जब मिल सकी न मुझको मंजिल मुरादों वाली,
तब राह में खड़े हो, अरमान बेचता हूँ.
सुनता नहीं है कोई, दरबार में किसी की,
बस्ती के शोर में अब, मैं कान बेचता हूँ.
इस भागती सड़क पे इन्सां को कौन पूछे,
मैं तस्बीहों में भरकर भगवान बेचता हूँ.
मैं तंग आ चुका हूँ, है ज्ञान की ये नगरी,
अब आँखें मूँद कर बस अज्ञान बेचता हूँ.
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