शनिवार, 27 अगस्त 2011

ज़रा सा दम तो लेने दे

संवारूँगा तेरे जुल्फों के ख़म, ज़रा सा दम तो लेने दे,
मैं हँस के छीन लूँगा सारे ग़म, ज़रा सा दम तो लेने दे.

ज़मीं पैरों तले है, ना ही सर पे आसमां कोई,
थकन इस तरह तारी है, ज़रा सा दम तो लेने दे.

ये माना तू बसा है, मेरे दिल की यादगाहों में,
करूँगा गुफ्तगू तुझसे, ज़रा सा दम तो लेने दे.

अभी मक्तल से लौटा हूँ, हैं साँसें खूँ भरी मेरी,
सुबह फिर क़त्ल है होना, ज़रा सा दम तो लेने दे.

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