मैं क्यूँ नही समझ पाता
तुम्हारी अनकही बातें।
वो बातें जो तुम छोड़ देते हो, कहते कहते...
और फिर हँस देते हो एक फीकी हँसी।
आँखों में तैर सा जाता है पानी,
और मैं, नही समझ पाता कुछ भी
ना वो हँसी, ना आँख का पानी।
इस दरमियान कह जाते हो बहुत कुछ तुम
पर मैं उलझा रह जाता हूँ इसी सवाल में,
कि... क्यूँ नही समझ पाता मैं
तुम्हारी अनकही बातें।
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