शनिवार, 14 नवंबर 2009

एक सपना निजी सा

सपने देखे हैं मैंने, कुछ बेगाने से
जो पले हैं बरसों से उन आँखों में जिसने मुझे जिन्दगी दी।

इसलिए नही कि मैं कोई फ़र्ज़ निभाना चाहता हूँ,
या मैं कुछ और सोच ही नही सकता।
बल्कि इसलिए कि इतने सपनो के बीच,
कोई हक नही मुझे,कि मैं देखूं
एक सपना निजी सा.

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