मंगलवार, 4 मार्च 2014

Ghazal

अजब मशरूफ ये सारा ज़माना हो गया है,
लगे मकसद महज़, हमको हराना हो गया है।

यकीं किस्मत पे कर के, इन दिनों हम हैं बहुत खुश,
चलो नाकामियों का, इक बहाना हो गया है।

नज़ारे धुल गए हैं, अश्क की बारिश में जबसे,
हमारी दीद का मौसम, सुहाना हो गया है।

सुना त्योहार पर, अब चढ़ चुका है रंगे-मजहब,
बहुत मुश्किल यहाँ, होली मनाना हो गया है।

बड़ी शिद्दत से जिसको, ढूंढते हैं नज़्म में हम,
हमारा रब्त वो, कबका फ़साना हो गया है।
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मशरूफ- Busy
महज़- only
अश्क- Tears
दीद- Vision
शिद्दत- Passion
नज़्म- poem
रब्त- Relationship
फ़साना- story

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