गुरुवार, 6 मार्च 2014

Ghazal

कोई मुझसे ही गलती हो गयी है,
नज़र तेरी, जो नम सी हो गयी है।

उनींदी हैं, मेरी आँखें अभी तक,
सुबह कुछ आज, जल्दी हो गयी है।

जिकर जब भी, किया है मैंने तेरा,
इबारत सारी, गीली हो गयी है।

ज़रा पैसे, जो मेरे हाथ आये,
ख़ुशी बेबात, मँहगी हो गयी है।

फसल रोती रही है, पानियों बिन,
फलक पे खुश्क, बदली हो गयी है।

कभी मिलकर के तुम, वापस बिछड़ लो,
तुम्हारी याद, धुँधली हो गयी है।

लिखूँगा अब, मैं बस फरमाइशों पर,
कलम की, आज बिक्री हो गयी है।

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