शुक्रवार, 14 मार्च 2014

Ghazal

भरे हैं इस तरह हमने, जिए जाने के हरजाने,
लिखी हैं झूठी कुछ नज्में,सुनाये झूठे अफ़साने।

दिखाई दे रहे हैं दाग दिल के, आईने में यूँ,
कि अपने अक्स से मैं इन दिनों, लगता हूँ शरमाने।

फलक का चाँद बैरी, आज कल सोने नहीं देता,
वो अक्सर ख्वाब में,लगता है सारे ख्वाब गिनवाने।

सहर और शाम बेमतलब सा, मैं चलता रहा जानाँ,
तुम्हारे पास लौटा हूँ, तो बस शब भर को सुस्ताने।

हमारी जिन्दगी में, खैर अब भी प्यार है बाकी,
कि कुछ रातें जगी सी, आज भी बैठी हैं सिरहाने।

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