ये नज़र जाएगी, ये बदन जाएगा,
फिर भी दिल का कहाँ बाँकपन जाएगा।
सजदे में भी रहा चूमता जो जमीं,
किस तरह उसके दिल से वतन जाएगा।
बस इसी डर ने सोने दिया ना मुझे,
बेख़याली में सर से कफ़न जाएगा।
उसमें दिखने लगी हैं वही आदतें,
मुझको डर है, वो मुझसा ही बन जाएगा।
कुछ रूहानी नहीं, कुछ रूमानी नहीं,
कैसे तुझ तक ये मेरा सुखन जाएगा।
फिर भी दिल का कहाँ बाँकपन जाएगा।
सजदे में भी रहा चूमता जो जमीं,
किस तरह उसके दिल से वतन जाएगा।
बस इसी डर ने सोने दिया ना मुझे,
बेख़याली में सर से कफ़न जाएगा।
उसमें दिखने लगी हैं वही आदतें,
मुझको डर है, वो मुझसा ही बन जाएगा।
कुछ रूहानी नहीं, कुछ रूमानी नहीं,
कैसे तुझ तक ये मेरा सुखन जाएगा।
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