बुधवार, 8 जनवरी 2014

तीसरे जनमदिन पर

शुरू के तीन दहाई साल
बस टुकड़ों में ही याद है मुझे।
कोई कोई वाकया, कोई कोई लमहा, बस।
कभी किसी साल को कुरेदूँ ,
तो लेदे कर घंटे - दो घंटे की यादें निकलती हैं।
कोई याद दिलाए तो यूँ सुनाता हूँ, जैसे बरसों पहले पढ़ी हुई नॉविल के चंद पन्ने सुनाता है कोई, ज़ेहन पर जोर डालकर।

पर हाल के तीन बरस, जब से वो आया है, हर पल साथ चलते हैं मेरे।
आँखें मूँद लूँ तो उसका हर लम्स, हर लफ्ज़ महसूस होता है मुझे।
उसका रूठना- मनाना, जागना- जगाना,
सब याद है मुझे।
आज भी उसके झूठे आंसुओं को सोच लूँ तो हँस देता हूँ,
वैसे ही जैसे कि, उसकी मुस्कुराहटों पर भींग जाती हैं पलकें।

ये कोई ख़ास बात नहीं शायद, हर वालिद ऐसा ही तो महसूस करता है।
खास ये है कि इन तीन सालों ने एक नयी जिंदगी दी है मुझे,
वो ज़िन्दगी जिसके हर लम्हे को मैं जी रहा हूँ, हर लम्हा, लम्हा दर लम्हा।

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