सब्ज़ सपने पिरो गयी शायद,
दिल में वो इश्क बो गयी शायद।
हर नज़र देखती है इस जानिब,
कुछ खता मुझसे हो गयी शायद।
भोर काँधे पे मेरी था काजल,
रात भर फिर वो रो गयी शायद।
भूल बैठा हूँ सूरते-साकी,
तिश्नगी दूर हो गयी शायद।
अब तो राहें हैं, सिर्फ राहें हैं,
एक मंजिल थी, खो गयी शायद।
दिल में वो इश्क बो गयी शायद।
हर नज़र देखती है इस जानिब,
कुछ खता मुझसे हो गयी शायद।
भोर काँधे पे मेरी था काजल,
रात भर फिर वो रो गयी शायद।
भूल बैठा हूँ सूरते-साकी,
तिश्नगी दूर हो गयी शायद।
अब तो राहें हैं, सिर्फ राहें हैं,
एक मंजिल थी, खो गयी शायद।
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