आज बहुत बरस बाद फिर उसी राह से गुज़रा,
सब वैसे का वैसा था.
मानो इस गली ने बंद कर रक्खे हों,
अपनी सारी खिड़कियाँ और दरवाज़े.
कोई बदलाव ना आने सके, इसलिए नुक्कड़ पे पान वाले ताऊ ने,
आज भी विविध भारती बजाये रक्खा है.
पर मैं शायद बदल गया, आते ही रौब से कहा,
"एक स्पेशल चाय दे बे, छोटू"
सहम सा गया वो, पूछा तक नहीं उसने तुम्हारे बारे में,
और गर पूछ बैठता भी, तो क्या बताता मैं,
कि अब तुम्हे टपरी की चाय नहीं भाती,
या ये कि अब नहीं पीते उधार की तुम,
ना ही पूछते हो किसी छोटू से ,
" पाँच का पहाड़ा याद हुआ तुझे?"
अपने बदलाव को सोचते हुए उठ खड़ा हुआ ,
दस का नोट टेबल पे रख, अभी निकला ही था,
कि छोटू ने आवाज़ लगायी,
"साहब, आपके छुट्टे"
शर्मिंदा सा, वो टिप उठाये, चला आया था मैं.
इस ख़त के साथ, वही कुछ सिक्के, पिछली यादों के,
भेज रहा हूँ.
इन्हें देख, अगर याद आये गली की तुम्हे,तो आ जाना,
मैं इंतज़ार करूँगा हर शाम,उसी चाय की टपरी पर...
:)
जवाब देंहटाएंkaafi achchi hai...
Sindri ki chaay ki dukaan yaad aa gai... :)
Jamshedpur me milo.. waisi hi chaay pilaunga... :)