बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

Ghazal

ख़यालों से मेरे तल्खी हटा दो,
कलम से या मेरी स्याही हटा दो।

यहाँ अहसास कबके मर चुके हैं,
नए सपनों की सब अर्जी हटा दो।

परे दीवार के जब है अँधेरा,
तो इस दीवार से खिड़की हटा दो।

मैं ख्वाबों पर तभी लिख पाउँगा जब,
मेरे ख्वाबों से तुम रोटी हटा दो।

भला माज़ी पे कबतक सर धुनोगे,
दिलों से बात सब पिछली हटा दो।

मगर मुमकिन है कुछ भी कर गुज़रना,
जेहन पे गर घिरी बदली हटा दो।

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