है सोचा, तेरी यादों से, ये भर दूं.
भुला के वादे सब, पोशीदगी के,
शामे-महफ़िल तुम्हारे नाम कर दूं.
मैं जो हूँ, जैसा भी बना हूँ,
ये सब इनायत है तुम्हारी,
मगर इल्ज़ाम, इन नाकामियों का,
कहो कैसे, तुम्हारे सर ये मढ़ दूं.
तुम्हारी ख्वाहिशें, हैं ख्वाब मेरे,
तुम्हारा ग़म मेरी अश्कों में शामिल,
जरा कह के हमें तू देख हमदम,
झुलसते दोपहर में रात जड़ दूं.
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