मंगलवार, 11 मार्च 2014

Ghazal

ये माना तुमको हर सूरत, इरादों को कुचलना है,
सुनो अपना इरादा भी, हमें तुमको बदलना है।

अगर दरिया बने हैं हम, तो फिर राहों की परवा क्या?
जिधर भी रास्ता निकले, उधर ही चल निकलना है।

यूँही बस कोसते रहने से, दुनिया है बदलती कब,
करो या मान लो नाहक, लहू का यूँ उबलना है।

सुना आसान होता है, ढलानों पर सफ़र करना,
मगर मुश्किल उमर का बेसबब, बेबात ढलना है।

अभी से कह न मुड़ने को, अभी बाकी है कितना कुछ,
अभी गिरना है ठोकर पे, अभी गिर के संभलना है।

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